देशभक्ती गीते
मेरे देश की धरती सोना उगले
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती ।
बैलों के गले में जब घुँघरू
जीवन का राग सुनाते हैं,
ग़म कोसों दूर हो जाता है, खुशियों के कँवल मुस्काते हैं।
सुन के रहट की आवाज़े, यूँ लगे कहीं शहनाई बजे,
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन
की तरह हर खेत सजे।
जब चलते हैं इस धरती पे हल, ममता अंगड़ाइयाँ लेती है।
क्यूँ ना पूजें इस माटी को जो
जीवन का सुख देती है ।
इस धरती पे जिसने जनम लिया, उसने ही पाया प्यार तेरा,
यहाँ अपना पराया कोई नहीं, है सब पे है माँ उपकार तेरा।
ये बाग़ है गौतम, नानक का, खिलते हैं अमन के फूल यहाँ ।
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक, ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ।
रंग हरा हरी सिंह नलवे से, रंग लाल है लाल बहादुर से,
रंग बना बसंती भगत सिंह, रंग अमन का वीर जवाहर से ।
देशभक्ती गीते / कर
चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों
कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन
साथियों,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
।
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई,
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने
दिया ।
कट गये सर हमारे तो कुछ ग़म
नहीं,
सर हिमालय का हमने न झुकने
दिया।
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियों।
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों।
ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं
मगर
जान देने की रुत रोज़ आती नहीं।
हुस्र और इश्क़
दोनों को रुसवा करे,
वो जवानी जो खूँ में नहाती
नहीं।
आज धरती बनी है दुल्हन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
।
राह कुर्बानियों की न वीरान हो,
तुम सजाते ही रहना नये क़ाफ़िले
।
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है,
ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले
।
बाँध लो अपने सर से कफ़न
साथियों।
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों।
खींच दो अपने खूँ से ज़मीं पर
लकीर,
इस तरफ़ आने पाये न रावण कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे,
छूने पाये न सीता का दामन कोई।
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियों ।
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
।
देशभक्ती गीते / मेरा
रंग दे बसंती चोला
मेरा रंग दे बसंती चोला, माए रंग दे
मेरा रंग दे बसंती चोला ।
दम निकले इस देश की खातिर बस
इतना अरमान है।
एक बार इस राह में मरना सौ
जन्मों के समान है
देख के वीरों की कुर्बानी अपना
दिल भी बोला
मेरा रंग दे बसंती चोला ।
जिस चोले को पहन शिवाजी खेले
अपनी जान पे
जिसे पहन झाँसी की रानी मिट गई
अपनी आन पे
आज उसी को पहन के निकला हम
मस्तों का टोला
मेरा रंग दे बसंती चोला ।
