2.वारिस कौन ? / 8 वी/ हिंदी /टेस्ट -1
इस पाठ का/ कविता का अच्छे से पठन/ अध्ययन करे और टेस्ट को हल कीजिए | टेस्ट मनोरंजक है सबको जरुर पसंद आएगी | कुल २० गुणोंके लिए प्रश्न १० है |
एक राजा था। उसके चार बेटियाँ थीं। राजा ने सोचा कि में से जो सबसे बुद्धिमती होगी, उसे ही अपना राजपाट सौंपेगा । इसका फैसला कैसे हो? वह सोचने लगा। अंत में उसे एक उपाय सूझ गया ।उसने एक दिन चारों बेटियों को अपने पास बुलाया। सभी को गेहूँ के सौ-सौ दाने दिए और कहा, "इसे तुम अपने पास रखो, पाँच साल बाद मैं जब इन्हें माँगूँगा तब तुम सब मुझे वापस कर देना।"
गेहूँ के दाने लेकर चारों बहनें अपने-अपने कमरे में लौट आईं। बड़ी बहन ने उन दानों को खिड़की के बाहर फेंक दिया। उसने सोचा, 'आज से पाँच साल बाद पिता जी को गेहूँ के इन दानों की याद रहेगी क्या? और जो याद भी रहा तो क्या हुआ..., भंडार से लेकर दे दूँगी।' दूसरी बहन ने दानों को चाँदी की एक डिब्बी में डालकर उसे मखमल के थैले में बंद करके सुरक्षा से अपनी संदूकची में डाल दिया। सोचा, 'पाँच साल बाद जब पिता जी ये दाने माँगेंगे, तब उन्हें वापस कर दूंगी।'
तीसरी बहन बस सोचती रही कि इसका क्या करूँ । चौथी और लोटी बहन तनिक बच्ची थी। शरारतें करना उसे बहुत पसंद था। गेहूँ के भुने दाने भी बहुत पसंद थे। उसने दानों को भुनवाकर खा डाला और खेल में मग्न हो गई । तीसरी राजकुमारी को इस बात का यकीन था कि पिता जी ने उन्हें यूँ ही ये दाने नहीं दिए होंगे। जरूर इसके पीछे कोई मकसद होगा। पहले तो उसने भी अपनी दूसरी बहनों की तरह ही उन्हें सहेजकर रख देने की सोची, लेकिन वह ऐसा न कर सकी। दो-तीन दिनों तक वह सोचती रही, फिर उसने अपने कमरे की खिड़की के पीछेवाली जमीन में वे दाने बो दिए। समय पर अंकुर फूटे। पौधे तैयार हुए, दाने निकले। राजकुमारी ने तैयार फसल में से दाने निकाले और फिर से बो दिए। इस तरह पाँच वर्षों में उसके पास ढेर सारा गेहूँ तैयार हो गया।
पाँच साल बाद राजा ने फिर चारों बहनों को बुलाया और कहा "आज से पाँच साल पहले मैंने तुम चारों को गेहूँ के सौ-सौ दाने दिए थे और कहा था कि पाँच साल बाद मुझे वापस करना । कहाँ हैं वे दाने ?” बड़ी राजकुमारी भंडार घर जाकर गेहूँ के दाने ले आई और राजा को दे दिए। राजा ने पूछा, "क्या ये वही दाने हैं जो मैंने तुम्हें दिए थे ? "
तीसरी बहन बस सोचती रही कि इसका क्या करूँ । चौथी और लोटी बहन तनिक बच्ची थी। शरारतें करना उसे बहुत पसंद था। गेहूँ के भुने दाने भी बहुत पसंद थे। उसने दानों को भुनवाकर खा डाला और खेल में मग्न हो गई । तीसरी राजकुमारी को इस बात का यकीन था कि पिता जी ने उन्हें यूँ ही ये दाने नहीं दिए होंगे। जरूर इसके पीछे कोई मकसद होगा। पहले तो उसने भी अपनी दूसरी बहनों की तरह ही उन्हें सहेजकर रख देने की सोची, लेकिन वह ऐसा न कर सकी। दो-तीन दिनों तक वह सोचती रही, फिर उसने अपने कमरे की खिड़की के पीछेवाली जमीन में वे दाने बो दिए। समय पर अंकुर फूटे। पौधे तैयार हुए, दाने निकले। राजकुमारी ने तैयार फसल में से दाने निकाले और फिर से बो दिए। इस तरह पाँच वर्षों में उसके पास ढेर सारा गेहूँ तैयार हो गया।
पाँच साल बाद राजा ने फिर चारों बहनों को बुलाया और कहा "आज से पाँच साल पहले मैंने तुम चारों को गेहूँ के सौ-सौ दाने दिए थे और कहा था कि पाँच साल बाद मुझे वापस करना । कहाँ हैं वे दाने ?” बड़ी राजकुमारी भंडार घर जाकर गेहूँ के दाने ले आई और राजा को दे दिए। राजा ने पूछा, "क्या ये वही दाने हैं जो मैंने तुम्हें दिए थे ? "